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कियै लिखै छी / अविरल-अविराम / नारायण झा

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उठैसँ सुतै धरि
हमर अन्तर्मनक दुरूखा पर
ठाढ़ रहैए
छोट-नमहर, पातर-मोट
पाथर सन, मखमल सन
भाला सन, सूइया सन
ढेपा सन, पहाड़ सन
फूल सन, काँट सन
सोना आ टलहा सन
संवेदना

आ सभ एकहि बेर
करय चाहैए प्रवेश
हमर अन्तर्मनमे
ककरो आगिक रसौ दS
ककरो पानिक छीच्चा दS
ककरो चुचकारि
ककरो गुम्मे-गुम्म
छी थथमारैत

ककरो बेकलता देखि
ककरो खुशी देखि
भS जाइत छी संवेदित
ओ संवेदना
कुदैए, फानैए
हमरा अन्तर्मनमे
तखन लै अछि
शब्दक आकार
शब्द बनए लगै अछि
हमरा लेल
हमर कविता।