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किय तोरा गे सोहबी , माइ मन परलौ ! / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

पत्नी को उदास देखकर पति ने पूछा- ‘तुम उदास क्यों हो? क्या तुम्हें अपने पितृगृह के लोगों का स्मरण हो आया है?’ पत्नी ने उत्तर दिया- ‘प्रभु, मुझे चिंता है कि मेरे मायके का समाचार लाकर कौन देगा?’ पति उसकी माँ, चाची और भाभी का परिचय पहचान के लिए विशेष जानकारी प्राप्त करना चाहता है। पत्नी अपनी माँ और चाची का परिचय देती है तथा भाभी के विषय में कहती है कि वह तो गुलाब के फूल जैसी है। अब पति स्वयं समाचार लाने के लिए तैयार होकर ससुराल चल देता है। वह दो-चार दिनों के लिए कहकर गया, लेकिन छह महीने हो गये, फिर भी नहीं लौटा। इसके लिए पत्नी का चिंतित होना स्वाभाविक ही है। भाभी का परिचय देना ही उसके लिए घातक बना।

किय तोरा गे सोहबी<ref>सुहागिन</ref>, माइ मन परलौ<ref>मन पड़ना; स्मरण हो आना</ref>!
किय तोरा गे सोहबी, चाची चित लागलौ।
किय तोरा गे सोहबी, भौजो मन परलौ॥1॥
नहिं मोरा अहे परभु, माइ मन परलै।
नहिं मोरा अहे परभु, चाची चित लागलै।
नहिं मोरा अहे परभु, भौजो मन परलै॥2॥
हमरो नैहर के परभु, बड़ी दूर देसबा।
के<ref>कौन</ref> आनतो<ref>लायगा</ref> हे परभु, नैहर के कुसलबा॥3॥
कौनी रँग गे सोहबी, तोर माइ के रुपबा।
कौनी रँग गे सोहबी, चाची के सरूपबा।
कौनी रँग के सोहबी, भौजो के सकलबा<ref>शक्ल</ref>॥4॥
अढ़लो<ref>अड़हुल</ref> के फूल ऐसन परभु, माइ के रुपबा।
कुसुम के फूल ऐसन परभु, चाची के सरुपबा।
गुलाब के फूल ऐसन परभु, भौजी के सकलबा॥5॥
आनि बरु देइबो गे सोहबी, नैहर के कुसलबा।
ई कहि चलि भेलै परभु, ससुररिया॥6॥
कहि बरु गेलै परभु, दुइ चारि दिनमा।
बीती बरु गेलै परभु, छब जे महिनमा॥7॥

शब्दार्थ
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