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किराए के घर, उधार के खेत के बीच / नीलोत्पल

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किस तरह अवेरती होंगी वे
अपने घरों को
जब दिन-दोपहर जुटी हों खेतों में

निंदाई करते वक्त उनके हाथ
तेज़ी से चलते हैं
उसी तेज़ी से पैर भी
जब वे लौटती हैं घरों की ओर
बच्चों की चिंता में

उन्हें याद नहीं कि
धूप उनके चेहरों में धँसकर
बिखर रही है मिट्टी की तरह
बावजूद इसके
खुरपी को मज़बूती से थामे
उखाड़ती जा रही हैं जड़ों से
ख्ातों की पाँतों के बीच उग आए अनावश्यक चारे को

वे आदमी की कम आमद में
चलाती हैं गुज़ारा
करती हैं काम
लहसुन चौपने, उन्हें निकालने
खेत निंदने, प्याज़, मैथी उपाड़ने
खेत बांटने
और घर में किल्लत सोरने तक का

वे बैठती नहीं
दिन भर की थकान के बाद भी
साँझ के झुटपुटे में फूँकती हैं चूल्हा
जरमन की छोटी पतीली में
उफनता है समुद्र

हली की औरतें
किराए के घर, उधार के खेत के बीच
उन बीजों की तरह बिखरी पड़ी हैं
जो छूट गए हैं फ़सलों की कटाई के दौरान