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किरिन एक मुट्ठी भरि / जीवकान्त
Kavita Kosh से
आँकुरक धक्का अछि
सहे-सहे फाटि रहल अछि
बदामक मोट छाल
थोड़-थोड़ देखाइत अछि
पानिक एक पातर तह
दाना सभक बीचमे
चमकैत पानिक तह
छू कए करैत अछि
खोइंचाकेँ कोमल
जगबैत अछि, निन्नसँ
खोलैछ ओकर पिपनी
दैत अछि, आँकुरकेँ बहरएबाक वेग
पानिकेँ चमकौने अछि
सूर्यक किरिन मुठ्ठी भरि
दोग दने ओ पैसल अछि अन्नमे
आँकुरक कोंढ़मे
आ सहे-सहे दीप्त करैछ ओकर जीवन