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किसको रिश्ता यहाँ निभाना है / कविता सिंह
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किसको रिश्ता यहाँ निभाना है।
बेवफ़ाई का अब ज़माना है॥
सोज़ दिल में कोई जगाना है-
वस्ल का ख्वाब फिर सजाना है।
ज़हर कितना है यहाँ फ़ज़ाओ में-
मौत हँसकर गले लगाना है।
ये अजब सानेहा हुआ मुझ पर-
दिल की नज़दीकियाँ भुलाना है।
बात वादों की थी इरादों की-
क़िस्सा-ए-इश्क़ को भुलाना है।
आतिशे-इश्क़ बुझ न पाएगी-
जीस्त को खाक़ में मिलाना है।
हुक्मरानी है इश्क़ की ऐ 'वफ़ा' -
ज़ख़्म खाना है मुस्कुराना है।