किसमें कितना दम, कितना पानी है! / माधव शुक्ल
निकल पड़े मैदाने जंग में गर कोई अभिमानी है।
आज देखना है किसमें कितना दम, कितना पानी है।।
उठ बैठो सब काम छोड़कर आज देश-हित नारी-नर।
बलिदानों का ढेर लगा दो, स्वतन्त्रता की वेदी पर।।
दहला दो दिल्ली दीवारें, ओ भारत के बाँके वीर।
चूर चूर कर दो सदियों की, पराधीनता की ज़ंजीर।।
आज हिन्द में फिर से मरकर नई जान पहनानी है।
आज देखना है किसमें कितना दम, कितना पानी है।।
हिन्दू मुस्लिम भेदभाव औ छुवाछूत के घृणित सवाल।
चूर-चूर कर इन्हे फेंक दो, ऐ भारत माता के लाल।।
आज हिन्द की आज़ादी पर, हँस-हँस कर मर जाना है।
देशप्रेम, कौमियत, सपूती, दुनिया को दिखलाना है।
दिखलानी है लगन लालसा, कितना जोश जवानी है।
आज देखना है किसमें कितना दम, कितना पानी है।।
रण दुन्दुभी बजी गांधी की, सहज कोई कप्तान नहीं।
होंगे या आज़ाद नहीं तो, तन में होगी जान नहीं।।
किन्तु न कल से रहने देंगे, अकल ठिकाने कर देंगे।
हम भारती आज मरकर, माता की झोली भर देंगे।
माधव आज लाज हिन्द की, मरकर हमें बचानी है।
आज देखना है किसमें कितना दम, कितना पानी है।।