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किसलिये अंतर भयंकर? / हरिवंशराय बच्चन
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किसलिये अंतर भयंकर?
चाहता मैं गान मन का,
राग बन जाता गगन का,
किंतु मेरा स्वर मुझी में लीन हो मिटता निरंतर!
किसलिये अंतर भयंकर?
चाहता वह गीत गाना,
सुन जिसे हो खुश जमाना,
किंतु मेरे गीत मुझको ही रुला जाते निरंतर!
किसलिये अंतर भयंकर?
चाहता मैं प्यार मेरा,
विश्व का बनता बसेरा,
किंतु अपने आप को ही मैं घृणा करता निरंतर!
किसलिये अंतर भयंकर?