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किसान अब भी चक्की है / शशि सहगल
Kavita Kosh से
शहर किसान से ही बनता है
झोंपड़पट्टी की गन्दगी
चलाती है सेठ का कारखाना
पानी बरसे, मिले चारा
पेट भरें, गाय और बैल
पर बादलों में तो
जल की दरक भी नहीं।
कैसे पाले बैल
कहाँ से दूध दे गाय
लाचार, रात के अँधेरे में
हाँक ले गया उन्हें।
अब तक तो डिब्बा मीत
जूता-चप्पल बन गया उनका
डरता है बोलने से
डरता है पुजारी से
गौ हत्या !
शुद्धि के वास्ते,
किसे बेचे वह अब?