किसी का दर्दे-दिल प्यारे तुम्हारा नाज़ क्या समझे / सौदा
किसी का दर्दे-दिल प्यारे तुम्हारा नाज़ क्या समझे
जो गुज़रे सैद <ref>शिकार</ref> के दिल पर उसे शहबाज़<ref>शाही बाज़</ref> क्या समझे
रिहा करना हमें सैयाद<ref>शिकारी</ref> अब पामाल करना है
फड़कना भी जिसे भूला हो सो परवाज़<ref>उड़ान</ref> क्या समझे
न पूछो मुझसे मेरा हाल टुक<ref>ज़रा-सा</ref>दुनिया में जीने दो
खुदा जाने मैं क्या बोलूँ कोई ग़म्माज़<ref>चुग़लख़ोर</ref> क्या समझे
कहा चाहे था तुझसे मैं लेकिन दिल धड़कता है
कि मेरी बात के ढब को तू ऐ तन्नाज़<ref>व्यंग्य करने वाला</ref> क्या समझे
जो गुज़री रात मेरे पर किसे मालूम है तुझ बिन
दिले-परवाना का जुज़-शमा<ref>शमा के अलावा</ref> कोई राज़ क्या समझे
न पढ़ियो ये ग़ज़ल ‘सौदा’ तू हरगिज़ ‘मीर’ के आगे
वो इन तर्ज़ों से क्या वाक़िफ़ वो ये अंदाज़ क्या समझे