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किसी की दोस्ती अच्छी किसी की दुश्मनी अच्छी / कैलाश झा 'किंकर'
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किसी की दोस्ती अच्छी किसी की दुश्मनी अच्छी।
मगर इस दोस्ती या दुश्मनी से ज़िन्दगी अच्छी॥
चलो अच्छा हुआ इस दोस्ती से तंग आये हम,
रजामंदी नहीं अच्छी तेरी नाराजगी अच्छी।
भरोसे रह किसी की ज़िन्दगी काटे न कटती है,
तुम्हारी आस पर हालत नहीं इस गाँव की अच्छी।
ठगे जाते न थे हम इस क़दर, अफसोस होता है,
न भोलापन है अच्छा या नहीं ये सादगी अच्छी।
शरीफों की शराफ़त पर नहीं विश्वास हो पाता,
इधर अख़बार की ख़बरें नहीं याँ आ रही अच्छी।
ज़माने भर की चुन-चुन कर बुराई ख़त्म कर देते,
मगर हम क्या करें मिलती नहीं सरकार भी अच्छी।