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किसी की याद में ये ज़िंदगी ऐसे बिताना है / सूरज राय 'सूरज'

किसी की याद में ये ज़िंदगी ऐसे बिताना है।
टपकते आँसुओं से आग जंगल की बुझाना है॥

ये दुनिया इक गणित ऐसा है जिसका हल नहीं कोई
जहाँ पानी नहीं होता वहीं कश्ती डुबाना है॥

हथेली कोई भी आगे न आये हम चिराग़ों के
हमें भी आँधियों में ज़र्फ़ अपना आज़माना है॥

कटे हैं हाथ दोनों और बच्चा अड़ गया ज़िद पे
तुम्हारे हाथ से बाबूजी पहला कौर खाना है॥

नुकीले दर्द के किरचों का मलबा हो गया ये दिल
मुझे तो क़ब्र में भी दायें करवट ही सुलाना है॥

हमेशा भूख़ मिट जाती है मेरी दो निवालों से
किसी के नाम का थाली में मेरी आबो-दाना है॥

दिये के नाम पर सारे के सारे सूरमा भागे
जो हरदम पूछते थे कौन-सी बस्ती जलाना है॥

बड़ी छोटी-सी धरती है मेरी आकाश छोटा सा
मुझे मालूम है "सूरज" को आकर लौट जाना है॥