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किसी के हक़ में कोई फ़ैसला सही देकर / राम नाथ बेख़बर

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किसी के हक़ में कोई फ़ैसला सही देकर
ख़ुशी मिली है मुझे औरों को ख़ुशी देकर

चमक रहे हैं सितारे गगन में सदियों से
ज़मीं को भीख में थोड़ी-सी रौशनी देकर

यक़ीन मानिए ख़ुद रब भी ख़ुश हुआ होगा
लरज़ती टूटती साँसों को ज़िंदगी देकर

रुला रही है न मालूम कितने बरसों से
हमारे दिल पे कई ज़ख़्म ये सदी देकर

कहाँ बुझी है कभी प्यास इक समंदर की
कहाँ थकी है समंदर को जल नदी देकर