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किसी के हाथ में जाम-ए-शराब / ग़ुलाम रब्बानी 'ताबाँ'

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 किसी के हाथ में जाम-ए-शराब आया है
 के माहताब तह-ए-आफ़ताब आया है

 निगाह-ए-शौक़ मुबारक नशात-ए-गुल-चैनी
 रुख़-ए-निगार पे रंग-ए-इताब आया है

 सज़ा-ए-ज़ोहद शब-ए-माहताब क्या कम थी
 के रोज़-ए-अब्र भी बन के अज़ाब आया है

 ज़िया-ए-हुस्न ओ फ़रोग़-ए-हया की आमेज़िश
 शफ़क़ की गोद में या आफ़ताब आया है

 तेरी निगाह की हल्की सी एक जुम्बिश से
 जहान-ए-शौक़ में क्या इंक़िलाब आया है