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किसी को अम्न की थोड़ी सी इल्तिजा है क्या / प्रेमचंद सहजवाला
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किसी को अम्न<ref>शान्ति</ref> की थोड़ी सी इल्तिजा है क्या
तुम्हारे पास मेरे दर्द की दवा है क्या
तुम्हारे शह्र की परछाईयाँ फज़ा में हैं
तुम्हारे शह्र कोई हादसा हुआ है क्या
जवां के काँधे पे मज़हब का इक तमंचा है
वो जानता नहीं भगवान् क्या खुदा है क्या
धुआँ उड़ा तो मैं हैराँ था देख तसवीरें
हलाक<ref>मृत</ref> लोगों में चेहरा मेरा छपा है क्या
उदू <ref>दुश्मन</ref>की जीत हुई जंग में न जाने क्यों
कमर न कसना भी कोई बड़ी खता है क्या
ख़बर सुनी तो बहुत लोग हड़बड़ाने लगे
ये देखना कोई अपना हुआ फ़ना<ref>मृत</ref> है क्या
शब्दार्थ
<references/>