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किसी को किसी से शिकायत न होती / देवी नांगरानी
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किसी को किसी से शिकायत न होती
अगर इस जहाँ में ये ग़ुरबत न होती
मुहब्बत की ईंटें न होती जो उसमें
तो रिश्तों की पुख़्ता इमारत न होती
कभी बाज़ आती न ज़ुर्मों से दुनियाँ
अदालत के ऊपर अदालत न होती
दरिंदों का होता यहाँ बोलबाला
जो इन्सानियत की इबादत न होती
सितारे, न धरती, न आकाश होता
जो दुनिया पे उसकी इनायत न होती
जो अपने उसूलों से गिरती न दुनिया
तो आज उसकी बद्तर ये हालत न होती
अगर ‘देवी’ लाते न उनको अमल में
उसूलों की फिर तो हिफ़ाजत न होती