भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
किसी दिन पत्थरों की सभा होगी / महेश आलोक
Kavita Kosh से
किसी दिन पत्थरों की सभा होगी
और वे किसी भी पूजा-घर में
बैठने से इन्कार कर देंगे
वे उठेंगे और प्राण-प्रतिष्ठा के तमाम मंत्र
भाग जाएंगे कंदराओं में
वह पूरा दृश्य देखने लायक होगा जबकि मंत्रों के चीखने-चिल्लाने याकि
मित्र मंत्रों के घातक प्रयोगों की धमकी का असर
उन पर नहीं होगा
वे अपनी सरकार से माँग करेंगे कि उस दिन को
राष्ट्रीय पर्व घोषित किया जाए
वे दुनिया भर की मूर्तियों को पत्र लिखेंगे
कि अगर सुरक्षित रहना है तो लौट जाएं
कलाकारों के आदिम मन में
और वह हमारे लिये कितना शर्मनाक दिन होगा जब
मलबे से तमाम पत्थर जुलूस की तरह निकलेंगे
और बरस पड़ेंगे ईश्वर पर