भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

किसी ने बर्फ़-सी भर दी थी तोपों के दहानों में / कांतिमोहन 'सोज़'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

किसी ने बर्फ़-सी भर दी थी तोपों के दहानों में ।
पलीते रोज़ लगते थे अगरचे कहवाख़ानों में ।।

इलाही भागकर जाएँ तो आख़िर हम कहाँ जाएँ
सँपोले आस्तीनों में सँपोले आस्तानों में ।

वो मंज़र देखकर हँसना भी नामुमकिन था रोना भी
शिकारी लापता थे शेर बैठे थे मचानों में ।

नए नक़्शे में हर बिल्डिंग के चहबच्चा ज़रूरी हो
कि जिनको डूबना हो डूब लें घर के मकानों में ।

सुना है आगे-आगे वो ज़माना आनेवाला है
जनेगी कार माँ बच्चे बनेंगे कारखानों में ।

घोटाले इस क़दर चारों तरफ़ हैं जी ये डरता है
कि अपना वाक़या शामिल न हो ले दास्तानों में ।

संभल जा सोज़ ये शोख़ी तुझे कब ज़ेब देती है
सुना है अब तेरी गिनती भी होती है सयानों में ।।