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किसी भी ग़म के सहारे नहीं गुज़रती है / मुनव्वर राना
Kavita Kosh से
किसी भी ग़म<ref>दु:ख</ref> के सहारे नहीं गुज़रती है
ये ज़िंदगी तो गुज़ारे नहीं गुज़रती है
कभी चराग़ तो देखो जुनूँ<ref>उन्माद</ref>की हालत में
हवा तो ख़ौफ़ <ref>भय</ref>के मारे नहीं गुज़रती है
नहीं-नहीं ये तुम्हारी नज़र का धोखा है
अना<ref>स्वाभिमान</ref>तो हाथ पसारे नहीं गुज़रती है
मेरी गली से गुज़रती है जब भी रुस्वाई<ref>बदनामी</ref>
वग़ैर मुझको पुकारे नहीं गुज़रती है
मैं ज़िंदगी तो कहीं भी गुज़ार सकता हूँ
मगर बग़ैर तुम्हारे नहीं गुज़रती है
हमें तो भेजा गया है समंदरों के लिए
हमारी उम्र किनारे नहीं गुज़रती है
शब्दार्थ
<references/>