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किस्मत तेरी फूटी / बालकृष्ण गर्ग
Kavita Kosh से
‘कंप्यूटर-ज्योतिषी’ बना बैठा जब बंदर देखा,
लगा पूछने शेर- ‘बता मेरी किस्मत का लेखा!’
बटन दबाया बंदर ने तो आई पर्ची बाहर-
‘दुर्बल जीवों को न सता तू, दया-भाव रख नाहर!
कभी न होगी कंप्यूटर की भविष्यवाणी झूठी,
शाकाहारी बन जा, वरना किस्मत तेरी फूटी’!
[रचना : 21 दिसंबर 1995]