भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
किस्मत / चंद ताज़ा गुलाब तेरे नाम / शेरजंग गर्ग
Kavita Kosh से
कब तलक यों ही रुलायेगी मुझे किस्मत,
नाउमीदी में डुबायेगी मुझे क़िमस्त,
हाथ से मैंने मिटा दी भाग्य की रेखा-
अब भला कैसे मिटायेगी मुझे किस्मत?