वार्ताः 21 जुलाई 1940 को भारत के इस महाल शहीद को अंग्रेजों ने फांसी की सजा दी थी। सन 1974 में जाकर इस शहीद की अस्थियां भारत आ पाई। ऊधम सिंह पंजाब में सुनाम गांव का रहने वाला था। उसके पिता टहल सिंह कम्बोज थे। तीन साल की उमर में माता का साया सिर से उठ जाता है। क्या बताया भलाः
ऊधम सिंह हुआ शूरवीर भारत का अजब सिपाही॥
सुनाम शहर पंजाब मैं श्यान जिनकी गजब बताई॥
टहल सिंह कम्बोज बाबू था करकै मेहनत पाल्या था
गरीबी क्यूकर तोड़ै माणस नै उसका देख्या भाल्या था
भारत का जनमाणस गोरयां नै अपणै संग ढाल्या था
चपड़ासी की करै नौकरी अपणा सब कुछ गाल्या था
देश प्रेम की टहल सिंह नै पकड़ी नबज बताई॥
चारों कान्ही देश प्रेम की पंजाब मैं थी लहर चली
गाम-गाम मैं चर्चा होगी हर गली और शहर चली
ईन्कलाब जिन्दाबाद की घणे गजब की बहर चली
सन ठारा सौ सतावण मैं हांसी मैं खूनी नहर चली
इस आजादी की चिन्गारी तै गोरयां कै दी कब्ज दिखाई॥
तीन साल का बालक था जिब माता हो बिमार गई रै
इलाज का कोए प्रबन्ध ना था बीमारी कर मार गई रै
याणे से की बिन आई मैं माता स्वर्ग सिधार गई रै
फेर खमोशी सारे घर मैं बिना बुलाएं पधार गई रै
बिन माता याणा बालक इसतै भूंडी ना मरज सुणाई॥
छह साल की उम्र हुई जिब पिताजी नै मुंह मोड़ लिया
तावले से नै लिया सम्भाला देशप्रेम तै नाता जोड़ लिया
रणबीर बरोने आले नै आज बणा सही यो तोड़ लिया
गरीबी मैं रैहकै बी ओ कदे भूल्या नहीं था फरज भाई॥