किस कारण जोग लिया / संजीव 'शशि'
काहे भटक रहे हो वन-वन।
किस कस्तूरी को व्याकुल मन।
अंतर में किसकी यादों का,
पल-पल जले दिया।
कहो किस कारण जोग लिया॥
किसकी मन में लगन लगाये।
कैसी अनबुझ अगन लगाये।
किसकी अथक प्रतीक्षा में हैं,
पथ पर तुमने नयन लगाये।
कुछ तो होगी मन में उलझन।
अपनाया वैरागी जीवन।
तन को कर डाला है समिधा,
कैसा हवन किया।
क्यों अपनी ही धुन में खोकर।
भटक रहे हो व्याकुल होकर।
दिन कटते हैं अंगारों पर,
रात कटे काँटों पर सोकर।
तोड़ चले क्यों सारे बंधन।
भूले रिश्तों का अपनापन।
किसकी खातिर कठिन साधना,
वाला गरल पिया।
मन के आँगन खिला फूल था।
जिसे देख सब गया भूल था।
राज कुँवर ले गया फूल को,
मुझे विरह का मिला शूल था।
मेरा उसको सब कुछ अरपन।
मेरे फागुन मेरे सावन।
साँसारिक सुख में प्रिय के बिन,
लागे नहीं जिया।