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किस चूनर को पकड़े आग / हरेराम बाजपेयी 'आश'

पहले कभी जली थी होली
आज जल रहे हैं प्रहलाद।

पहले की फगुनियाँ बयार,
मस्ती का राग सुनाती थी,
उमर से बूढ़े लोगों में भी,
नया जोश भर जाती थी,
आज जवानी बूढ़ी लगती,
महंगाई ने बदला राग।
पहले कभी जली थी...

पहले फागुन के फागों में,
अरे ऐसा आलम होता था,
टूटे और निराश दिलों में,
बीज उमंग के बोता था,
अब हर चौराहा चीख रहा है,
पर सुनी है चौपाल।
पहले कभी जली थी...

पहले जैसी खुशी कहाँ है,
और कहाँ है चाहत रंग,
कहाँ गई वह शांति-सभ्यता,
आज भीगता तन कहता है,
मन में है अवसाद।
पहले कभी जली थी...

पूरब जला जल रहा पश्चिम,
धर्म जाति अलगाव की आग,
कम दहेज के कारण किस दिन,
किस चूनर को पकड़े आग,
पहले एक हुआ था दानव,
आज हो रहे है बेतादाद।
पहले कभी जली थी होली,
आज जल रहे हैं प्रहलाद॥