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किस तरह निकलूँ / शहरयार
Kavita Kosh से
मैं नीले पानियों में घिर गया हूँ
किस तरह निकलूँ
किनारे पर खड़े लोगों के हाथों में
ये कैसे फूल हैं?
मुझे रुख़्सत हुए तो मुद्दतें गुज़रीं।