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किस दिन / इमरोज़ / हरकीरत हकीर
Kavita Kosh से
जितने वक़्त भीग कर न भीगना याद है
जितने वक़्त बरस के न बरसना याद है
जितने वक़्त खाली हो कर खाली न होना याद है
और जितने वक़्त अपना आप भी तुझे याद है
मुझे भी याद है
उतने वक़्त कोई भी और कुछ भी याद रह जाता है
वह भी भूल कर भीगें
कि भीगना भी याद न रहे
अन्दर की बाहर की आँखें बंद करके
और दिल खोल कर आसमां की तरह हद भूल कर
छुए अनछुए का कोई ख्याल न आये न रहे ...
बता देना वह दिन
मेरे दिल के मोबाईल पर