किस पंछी का कितना दाना पता किसे है? / शैलेन्द्र सिंह दूहन
किस पंछी का कितना दाना पता किसे है?
जाने कब हो उस तट जाना पता किसे है?
जी साँसों के ताने-बानों की ताबीरें,
फूले हैं हम गलत-सही की ढो तासीरें।
थिरक-थिरक दुख-सुख की लौ पे तक शम्मा को
किस पल बहक उठे परवाना पता किसे है?
किस पंछी का कितना दाना पता किसे है?
मीठे सपनों के आँगन में ला-ला लोंदे,
लीपा-पोती कर चमकाते रोज घरौंदे।
छिन-छिन कण-कण फिसल रही मुट्ठी से माटी
कब हो खाली हाथ हिलाना पता किसे है?
किस पंछी का कितना दाना पता किसे है?
हैं बीज उगे पौध बनीं फसलें लहलाई,
फल फूलों से लद ऋतुओं को टेर सुनाई।
खेल समय के काट लिया सब को विधना ने
खलिहानों का ठोड-ठिकाना पता किसे है?
किस पंछी का कितना दाना पता किसे है?
मन के पृष्ठों पे अशकों की स्याही देकर,
वंचित की पीड़ित की हंस गवाही देकर।
तोड़ चला सब कच्चे धागे इस जगती के
रे! साँसों की गाँठ लगाना पता किसे है?
किस पंछी का कितना दाना पता किसे है?