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किस पे खंजर है चलाना मुझको / आशीष जोग
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किस पे खंजर है चलाना मुझको,
ख़ुद से ख़ुद को है बचाना मुझको |
याद कर कर के जी रहे थे जिसे.
आज उसको है भुलाना मुझको |
जितने रिश्ते हैं उतनी ही रस्में,
क्या सभी को है निभाना मुझको |
कितनी उम्मीद ले के बैठा हूँ,
कोई ठोकर न लगाना मुझको |
उनसे तार्रुफ़ तो करा दो मेरा,
अजनबी कह के मिलाना मुझको |
मुझको लगते सभी हैं दीवाने,
सब क्यूँ कहते हैं दिवाना मुझको |