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कीलै काळ नै / ओम पुरोहित कागद
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जपी तपी ज्यूं
तपै तावड़ै
एक टांग ऊभी
जूनी खेजड़ी
लूआं भेळी
सांय-सांय
उचारै मंतर
कीलै
काळ नै।