भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

की कल्पना करब रामराजक / नारायण झा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कल्पना अछि रामराजक
कल्पना अछि देश स्वच्छक
देश कुहरि-कुहरि परात करैछ
देश अछि भीष्म सन बेधल
नहि पूरत देशक मनोरथ।

ग्रंथ पर अछि ग्रंथ छापल
लेख पर आलेख उचारल
विचार पर नव विचार जागल
दलक बीच जे अछि विभिषन पैसल
की ओ बचा सकत मर्यादा देशक?

पहिराओल रक्षकक वेश-भूषा
सीखल सभ भक्षकक भाषा
दास छथि सूच्चा भक्षकक
स्वार्थ-सिद्धिक मंत्र मे लिप्त
की पुराओत जन-जनक मनक अभिलाषा?

अजस्र अछि राम-लक्ष्मण सन धनुर्धर
जकरा आगू की आबि सकत हिम-गिरि-निर्झर
आघात पर आघात सँ
क' देने अछि पूर्ण मूर्छित
बान्हल छथि लक्ष्मण रेखाक भीतर।

प्राण चिन्ता सँ झुका
कहैत जीवन अपन एहिना नुका
अपन फन समेटि बचैक
पहिने अपन बचा माथा
सपन-सपनाक रही जायत कथा।

हे देशक प्रवीर वीर
देश बचाउ दुष्टक फन मीरि
कर्तव्य-कर्म अपन मात्रृभूमिक लेल
सभ विषाद तामस क्लेश गीरि
छी जँ पूत, जँ अछि दनुजत्व सँ ईड़।