भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

की भैलै ? / रौशन काश्यपायन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कलकल करलें ,छलछल करलें
कन्नो उमड़तें कन्ने सिकुड़तें
आपना में समैलेॅ सभ्यता केॅ
आपने कते नी अमर कहानी
पर आबेॅ नाक-भों सिकुड़तें होलेॅ
ई नदी सिनी एकदम चुपचाप छै
उदास छै कि हमरोॅ सोझो रो धारा
हमरहै सें रूसी केॅ कन्नें चल्ली गेलै?