की सखि, साजन? / भाग - 20 / दिनेश बाबा
191.
माह पूरै दरमाहा मिलतोॅ,
कुछ न कुछ अब जाहा मिलतोॅ,
मिहनतकश के जैसे फीस,
की सखि ‘बाबा’?
नहीं, ‘अतीस’।
192.
जें मुट्ठी भर धूप छिटलकै,
कविता जौनें खूब लिखलकै,
ज्ञानवंत विज्ञान के सिन्धु,
की ‘विश्वनाथ विश्व’?
नैं सखि, ‘देवेन्दु’।
193.
अमर प्रेम के, एक गायिका,
कोकिल कंठी, एक नायिका,
प्रेम चढ़ल परवान, जे तहिया,
की सखि ‘नूरजहाँ’?
नहीं, ‘सुरैय्या’।
194.
इ कैन्हों अजब दास्ताँ भे गेलै,
छिपैतें-छिपैतें बयाँ भे गेलै,
टूटल दिल के जैसें नैय्या,
की सखि ‘मधुबाला’?
नहीं, ‘सुरैय्या’।
195.
खूब खिलाड़िन छै विसात के,
दिनभर या एक दिनी रात के,
आँख, जिस्म मृदु ठोर के भाषा,
की सखि ”ऐश“?
नहीं, ”विपाशा“।
196.
सतक वीर रन के मशीन छै,
किरकेटर बड्डी प्रवीन छै,
खूब जमाबै हाथोॅ खुलकर,
की सखि, ‘लक्ष्मन’?
नैं, ‘तेन्दुलकर’।
197.
रहै जहाँ छै, बाग-बगीचा,
जे खेलै छै, डोल-डलीचा,
करिया मुख आरू पूँछ निशान,
की सखि ‘बंदर’?
नैं, ‘हनुमान’।
198.
ऊपर-नीचू, लाल लगै छै,
सौंसे देही, बाल लगै छै,
बुद्धि भरलोॅ, जेकरोॅ अंदर,
की सखि गुरिल्ला?
नैं सखि, बंदर।
199.
काम वही, जे धन बरसाबै,
सब बुदगर क, ऐसैं आबै,
दाता केरोॅ, चूवै लोर,
की सखि ठगवा?
नैं, घुसखोर।
200.
कारज, जें दौलत बरसाबै,
होशियारोॅ केॅ, ऐसैं आबै,
लै दोसरा सें, भरै तिजोरी,
की सखि डाका?
नैं, घुसखोरी।