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कुँआ ये प्यार का प्यासा बहुत है / जयनारायण बुधवार
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कुँआ ये प्यार का प्यासा बहुत है
सम्हलना,देखकर,गहरा बहुत है।
मेरे दिल पर न कोई तंज़ करना
ये बच्चा रात भर रोया बहुत है।
पता देती है उसकी बदमिजाजी
किसी ने टूट कर चाहा बहुत है।
नहीं है ख़ास कुछ चेहरे में मेरे
तुम्हारी आँख ने देखा बहुत है।
वहीं से आती हैं ठंढी हवाएं
तुम्हारी रूह में झाँका बहुत है।
बुरा मत मानो उसकी बेदिली का
वो राजा है,मगर तनहा बहुत है।
रहम मत कीजिये मुझ पर खुदाया
ये मरहम जख्म में लगता बहुत है।