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कुंडलियाँ - 2 / ऋता शेखर 'मधु'

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बालक हो या बालिका, दोनों हैं अभिमान।
एकरूप शिक्षा मिले, इतना रखिए ध्यान॥
इतना रखिए ध्यान, पुष्ट हो जाएँ तन से।
नज़रों से सम्मान, शिष्टता छलके मन से।
ऋता कहे यह बात, वही है अच्छा पालक।
सदा रखे समभाव, बालिका हो या बालक॥1

अनुरागी भँवरा करे, कड़े काष्ठ पर छेद।
शतदल में कैदी बने, कैसा है यह भेद॥
कैसा है यह भेद, समझ नहिं पाता कोई।
हुई बंसरी मौन, राधिका नैन भिगोई॥
अरुण उषा के संग, भोर की लाली जागी।
पूनम की है रात, चकोर हुआ अनुरागी॥2

सीढ़ी पर है मंजिलें, देख सके तो देख।
हर सोपान बनी कथा, बने अमिट आलेख।
बने अमिट आलेख, अडिग बन चढ़ते जाना,
है प्रकाश हर ओर, हथेली में भर लाना।
कदमों में आकाश, लिए चलती हर पीढी,
देख सके तो देख, मंजिलें होती सीढ़ी॥3