भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुइमा में कबूतर बोलै, मड़बा पर मोर हे / अंगिका लोकगीत

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

कुइमा<ref>कबूतर के रहने का एक प्रकार का दरबा; कपोतपालिका</ref> में कबूतर बोलै, मड़बा पर मोर हे।
बँगला पर बरुअबा बोलै, हमरो जनेउवा हे॥1॥
मड़बा के चारु ओर, बाबा अपने हे।
दिअऽ बाबा अजी बाबा, हमरो जनेउवा हे॥2॥
मड़बा के चारु दिस, मामा<ref>दादी</ref> अपने हे।
दिअऽ मामा अजी मामा, हमरो भीखैना<ref>भीख</ref> हे॥3॥
मड़बा के चारु दिस, चाचा अपने हे।
दिअऽ चाचा अजी चाचा, हमरो जनेउवा हे॥4॥
मड़बा के चारु दिस, चाची अपने हे।
दिअऽ चाची अजी चाची, हमरो भीखैना हे।
कुइमा में कबूतर बोलै, मड़बा पर मोर हे॥5॥

शब्दार्थ
<references/>