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कुछ करो, कुछ बचा ही रहता है / हरि फ़ैज़ाबादी

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कुछ करो, कुछ बचा ही रहता है
बोझ सर का बना ही रहता है

कोई कितना बड़ा हो पर, उससे
जो बड़ा है बड़ा ही रहता है

क्या अजब चीज़ है ये पैसा भी
जिसके देखो घटा ही रहता है

दिल नहीं जां भी तुम उसे दे दो
बेवफ़ा-बेवफ़ा ही रहता है

लाख घी-दूध से नहा ले वो
कोयला, कोयला ही रहता है

दिन बुरा कुछ करें तो उसमें भी
आदमी का भला ही रहता है

क्या ज़रूरत है दुःख में रोने की
यार सुख-दुःख लगा ही रहता है