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कुछ कहा शायद / आरती मिश्रा
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कदम बढ़ाए थे मैंने
डर-डरकर
मेरे शब्दों में
शंकाओं की थरथराहट को
पकड़ा तुमने
मेरी पूरी हथेली अपनी हथेलियों में लेकर
कुछ कहा शायद
मैंने सिर्फ़ बुदबुदाहट सुनी
और बस यन्त्रवत
कन्धों पर सिर धर दिया तुम्हारे
अब मुझे डर नहीं लग रहा