कुछ गीत प्रीत के गा तो लूँ / सच्चिदानंद प्रेमी
अब ऐसी भी क्या बात हुई,
थोड़ी सी हँसी थोड़ी सी खुसी-
यह बीत नहीं तो रात गई ;
बस थोडा सा ठहर अभी,
कुछ गीत प्रीत के गा तो लूँ!
ये बाग-बगीचे झूम रहे,
कलिओं को भौंरे चूम रहे,
ये ताल- घाट-सर-नदी-तरी,
बहकी धाराएँ मचल पड़ीं,
बतला कैसे इनको छोडूँ?
इनसे कैसे अब मुह मोडूँ?
इन्होने सब मिल प्राण दिए-
अमृत त्यागे हर गरल पिए,
इनसे मिल लूँ उनसे मिल लूँ-
बस थोडा सा ठहर अभी,
कहकर इनको जो नहीं कही-
मै आता हूँ जी आता हूँ-
कुछ गीत प्रणय का गा तो लूँ!
यह काल रात्रि यह मोह निशा,
अंगड़ाई लेती उठी उषा,
अरुणाभ नयन से प्रात भोर,
कर सभी दिशाएँ उठी शोर,
वाल-वृद्ध चले उठे सरोष,
हन्ता पर प्रतिहन्ता नहीं दोष,
है आज उद्वेलित घर-प्रांगन-
नगर-डगर सभी समर आंगन ;
भरा पाप- घट नहीं अब शेष,
देकर अरि-दल को यह सन्देश-
मै आता हूँ फिर आता हूँ
बस थोडा सा ठहर अभी-
कुछ ताप ह्रदय का घटे कहीं-
कुछ गीत प्रीत का गा तो लूँ?
ये बाढ़-ताड़ घेराबंदी,
अपने विस्तार की चौहदी,
हिमगिरि के परम उतुंग शिखर,
विन्ध्य नाग तल घाटी गहवर,
बहका-बहका ना पाक चलन,
गोली-बारी पर मौन सदन,
चहकी-सिसकी जल-थल सेना,
घुसकर चुपके से सह देना,
बतला दूँ उनको किया वही-
नापाक पाप कुछ कटे सही-
यह बीत नहीं तो रात गई-
बस थोड़ा सा ठहर अभी
मै आता हूँ फिर आता हूँ
कुछ गीत प्रीत का गा तो लूँ?