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कुछ जिस्म तो कुछ उसमें / प्रताप सोमवंशी

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कुछ जिस्म तो कुछ उसमें हुनर ढूढ़ रहे थे
हम आंख में नीयत का असर ढूढ़ रहे थे

सब पूछ रहे थे कि वजह मौत की क्या थी
हम लाश की आंखों में सफर ढूढ़ रहे थे

उस मोड़ से होकर तुझे जाना ही नहीं था
पागल थे जो ता-उम्र उधर ढू़ढ रहे थे

बच्चे जो हों परदेस तो पूछो न उनका हाल
तिनका भी गिरे तो वे खबर ढूंढ रहे थे

इस दौर ने हर चेहरे पे बेचैनियां लिख दीं
इक उम्र से सब अपना ही घर ढूढ़ रहे थे