Last modified on 16 अगस्त 2009, at 16:30

कुछ नई आवाज़ें पुराने कब्रिस्तान से / नोमान शौक़

मक्खी की तरह पड़ी है
आपकी चाय की प्याली में
हमारी वफ़ादारी

हम
जो बाबर की औलादें नहीं
बाहर निकलना चाहते हैं
पूर्वाग्रह और पाखंड के इस मक़बरे से

आख़िर
कब तक सुनते रहेंगे हम
इतिहास के झूठे खंडहरों में
अपनी ही चीत्कार की अनुगूँज

आप
जो बंसी बजा रहे हैं
गणतन्त्र रूपी गाय की पीठ पर बैठे
शहर के सबसे पुराने क़ब्रिस्तान से
उठती ये आवाजें
सुनाई दे रही हैं आपको !!