भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुछ मत सोचो कल क्या होगा / हरि फ़ैज़ाबादी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कुछ मत सोचो कल क्या होगा
जो भी होगा अच्छा होगा

माज़ी छोड़ो हाल सँवारो
मुस्तक़बिल ख़ुद बढ़िया होगा

साहिल क्या जाने बेचारा
सागर कितना गहरा होगा

शक्ल देखकर कहना मुश्किल
कौन आदमी कैसा होगा

नामुमकिन है वहाँ तरक़्क़ी
जहाँ हमेशा झगड़ा होगा

तुम बस पेड़ लगाते जाओ
हरा खीझकर सहरा होगा

बेफ़िक्री ख़ुद कहती तुम पर
अभी बाप का साया होगा