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कुछ मुक्तक / विनय राय ‘बबुरंग’

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जे जेतने बा अपना के बड़का बनल
दहेज चाही केतना ई आंकड़ा बनल
लेनी देनी में जेवन कमी रहि गइल
बेटी वाला से झगड़ा क कारन बनल।।

जब से गेंहू धान बो रहल बा आदमी
कहीं हँसत त कहीं रो रहल बा आदमी
लड़ रहल सूखा कहीं बाढ़ से हरदम
जेवन बाचल ऊ बोझ ढो रहल बा आदमी।।

साम्यवाद आई जब न्याय खातिर युद्ध करे
नस नस में पाप भरल ओकरा के सुद्ध करे
भरम क भूत चढ़ल जेकरा कपारे आजु
ओकरा के पीट-पीट आखिन से अन्ह करे।।

हम जिनिगी भर ओट दिहलीं बाकी चरवाहे रहि गइलीं
कब विहान होई निहारत ओही चउराहे रहि गइलीं
ई ओट तंत्र क दंवरी में अइसन रउदां गइलीं हम
कि गोल गांग क चक्कर में बउराहे रहि गइलीं।।

जनेव मति घरऽ नाहीं त टूट जइबऽ
अहम भावना क मद में लूट जइबऽ
गर इहे रही हालत त ना जियबऽ सान से
ई भावना निकाल दऽ नाहीं त उठ जइबऽ।

जे-जे मेहरमाउग भइल ओकर घर बटाइल बा
अपने करनी से देखऽ ऊ पागल अस बउराइल बा
गइयो हँ-भँइसियो हँ अइसने पाठ पढ़ावेली
जब-जब पाठ भुलाई तब तब बेलन से पिटाइल बा।।

कमात केहू सनकत केहू बा
दरोगा केहू अँइठत बा
अइसन जामना आइल भाई जी
घर केहू क पइठत केहू बा।।

जब से नसा धराइल खतम लूर हो गइल
बावन बिगहा के मंडा धूर हो गइल
जब बाबा क बिरासत फूँकत देर ना लागल
जिनिगियो अस भइल की कपूर हो गइल।।

जेहरे नजर घुमाई ओहर आगि बा लागल
जे दिनहीं डाले डाका ओकर भागि बा जागल
चाहे नेता होखे चाहे होखे केहू मुखिया
केहू अइसन नइखे जेपर दाग ना लागल।।

बा लूटे क होड़ लागल के ऊढ़ी फानता
सबेरे-साफ बंगला पर रोज भांग छानता
इहे कूल विकास ह भइया हो जानि लऽ
पहिले द कमीसन तब न पहचानता।।

करनी देख संसद क छाती मोर फाटता
एक पक्ष दूसरा के कुकुर अस काटता
संसद से गुलाब क सुगंध कहीं उड़ि गइल
अब मुलजिम फँसा-फँसा वारेन्ट खूब काटता।।

जेकरा से ओट गाजर-मुरई जानता
हमहीं के तरकारी बना स्वाद खूब चखता
चाहे सूखा से सुखाई चाहे बाढ़ से बहाई
दुलहिन झांके जइसे ऊ हेलकाप्टर से झांकता।।

सुखात देखि धान अब सहलो न जात बा
अइसन परल सूखा कि कहलो ना जात बा
बदरियो आवारा भइल हमके बुझाला ई
जब हमहीं आवारा भइलीं त ओकर कवन बात बा।।

केहू लेके बैसाखी सहारे चले
केहू बीमार दवाई सहारे चले
सुख नाहीं कहीं बा ई दुख छोड़ि के
केहू राम नाम लेके सहारे चले।।

किसानन क चेहरा आजु केतना मनहूस बा
पढ़ल लिखल घर घर में बेटा ना खुस बा
खेती आ नोकरी क दुई गा दुसमन आजु
खेतन में मूस आ दफ्तर में घूस बा।।

मरेला गरीब जब आवत माघ पूस बा
मरत बा उहो आजु भइल जे कंजूस बा
पी पी के दारू जे फूँक रहल अपना के
अइसनो परिवार में घरियार-आ सूंस बा।।

तीन पांच क खेल में बचवा सबसे आगे आगे
गउवों क कुल गोल क अदमी हरदम आकरा पीछे
थहले थाह न लागी बचवा केहर करवट बदली
जब देखीं तब गोल क संगे बम बम चिलम दागे।।

खउर खउर मोंछ के तू हूँ बन जा राधा
भले नोकरी रही की जाई पेंसन मीली आधा
छप जाई अखबार में फोटो देखी सारी दुनियां
फिर पागल हो खोजल करीहऽ आजा मोरे राधा।।

जब जब पड़े तारीख बेटा बीमार हो जाला
जब उतरे मैदाने-जंग में तीस मार हो जाला
एकरा आगे सभे फेल बा केहू बने धुरन्धर
मुलजिम बने से पहिले ऊहो सूबेदार हो जाला।।

गुंडई ओ पार से ए पार आ गइल
सुनलीं केहू क सीना गोली पार कर गइल
कब केकर कहवां केहू जान मार दे
ई गुंडई हद से सीमा क पार हो गइल।।

जेकर गोटी पीयल घर ओही क बनल
संगे मनेजर सेक्रेटरी परधानों बनल
अस कमीसनक दंवरी नधाइल भइया
जे मजा पा गइल ओकर खूबे लहल।।

ओट ले ले के हमके भजवलंऽ बहुत
अपना बंगला के खूबे सजवलंऽ बहुत
हमरा बखरा में खूलल आकासे मिलल
रात भर हमसे तरई गिनवलंऽ बहुत।।

ई जमाना कुसासन-दुसासन भइल
कि जिनिगी में कबहूं ना सावन भइल
आजु नेतन क दिल पाप से भर गइल
भले खूब वादा आ भासन भइल।।

केहू लउके ना दूध क धोवल आदमी
आके नफरत क बीज बोअल आदमी
देसा-जाती धरम भाई भाई बंटल
अपना करनी क फल से रोवल आदमी।।

दफतर सरकारी दलालन से घिर गइल
ओहदा वालन क चरित्र भी गिर गइल
कइसे मिली न्याय जहवां अइसन बा लोग
सच्चाई पर देखऽ आजु परदा गिर गइल।।

चुपके से घर में आके अइसन पहल कइल
उग्रवादियन क बम से धरती दहल गइल
एकता क धार में केहू ना बदल सकल
जे ताकल बुरी नजर से खूदे ऊ जल गइल।।

गिद्ध जइसन जेकर नजर होई
ओकरे जिनिगी क नाहीं गुजर होई
बित्ते-बित्ता जगह जे हड़पते चले
बोलऽ दूसरा क कइसे बसर होई।।

हवा-पानी देखऽ आजु असुद्ध हो गइल
राह चलते चलत उनसे युद्ध हो गइल
आजु जालिमन क गली-गली बाढ़ आ गइल
लास रोजे गिरे ईहे सिद्ध हो गइल।।

जे बुराई कइल ऊ खुदा हो गइल
जे भलाई कइल गुमसुदा हो गइल
जे करेजा से हरदम सटवले रहल
वक्त आइल त ऊहो जुदा हो गइल।।