भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कुछ रिश्तों के लिए (मुक्तक)/रमा द्विवेदी
Kavita Kosh से
१- तेरे प्यार का यह कैसा भरम है?
नहीं पास तुम हो,नहीं दूर हम हैं।
नहीं देते हँसने,नहीं देते रोने,
तेरे प्यार का यह कैसा सितम है?
२- नहीं सुनते फ़रियाद कोई हमारी,
रही बेबसी दिल की बेबश बेचारी।
किस ओर जाएं, न सूझे कोई राह,
लिया लूट ज़ालिम ने पूंजी है सारी।
३- मेरे प्यार का क्या कोई मुआयज़ा है?
समझ न सके तुम तो क्या फ़ायदा है?
हो दौलत या जायदाद अर्जी मैं दे दूँ,
तुझे पाने का क्या कोई कायदा है?
४- तेरे मन में क्या है समझ न सके हम,
रहें रात-दिन साथ कुछ न कहो तुम।
कहो क्या करें हम,मिटें फ़ासले सब,
हमें आजमाने की ज़िद न करो तुम।