भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कुछ लोगों की दुनिया में, फितरत ही ज़फा की है / सिया सचदेव
Kavita Kosh से
कुछ लोगों की दुनिया में, फितरत ही ज़फा की है
ऐ मेरे दिले-नादाँ कुछ तुझ को ख़बर भी है
हम अहले-वफ़ा की तो हालत ही अजब सी है
है दिल में भी मायूसी आँखों में नमी भी है
हम दर्द के मारे हैं, जाएँ तो कहाँ जाएँ
हालात मुख़ालिफ़ है चलना भी ज़रुरी है
कुछ रोज़ की सोहबत ने ये कैसा सितम ढ़ाया
मज़रूह तमन्ना है अहसास भी ज़ख़्मी है
जब ग़म से गुज़रती है इंसां की समझदारी
कुछ और सँवरती है कुछ और निखरती है
क्यूँ ज़ुर्मे-वफ़ा की मैं ता-उम्र सज़ा पाऊँ
ऐसी कोई नादानी, मैंने तो नहीं की है