भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुछ शेर / शिव रावल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं तमाशे-सा नट हूँ,
है ये महबूबा-सी जिंदगी तलबगार मेरी,
मैं वह अभिनय,
जिसको तरसेगा आनेवाला मंच,
वक़्त के हाथों गिरवी रखी गयी है
हँसी कईं बार मेरी शिव


मैं भी पल-दो-पल का शायर,
दो-चार रुबाइयाँ दौलत है मेरे भी हिस्से,
फिर भी हर रोज़ कमाने जाता हूँ
कुछ प्रेम-प्रसंग, हिज़्र के दोहे और वस्ल के किस्से 'शिव'

ये रास्ता पूछ रहा है मुझसे से कहाँ जान जाना है?
तुम्हार नाम लूं अगर बुरा तो नहीं मान जाएगा शिव

वो जो शोख चांदनी रातों में इतराते है
देख कर आसमा की तरफ,
क्या जाने के उसके हिस्से के अँधेरे पर
हम रोज़ अपने उजाले जाया करते हैं...शिव

दिल के टूटने का भी क्या गिला 'शिव' ,
आज तो कम से कम कोई नई बात करो...

कभी फुर्सत मिली तो पूछेंगे हाल तुम्हारा 'शिव'
के अभी तो उस सितमगर का ख्याल हर दम साथ होता है...

वह मौसम बा मौसम इतराते हैं इन अजनबियों के बीच
 मैं दस्तूर हूँ ख्वाब में भी हक़ीक़त का दामन थाम लेता हूँ

सहरा में बहारों की बौछारें ढूँढ़ते हो 'शिव' ,
बसंत कब का गुजर गया, वह मौसम बीत गए
जब वह सुर्खाब से परों वाले रूबरू होते थे अंजुमन में

उस शख्स की मेरी ज़िंदगी में ज़रूरत वसूलती है
लम्हा-लम्हा मुझसे,
पर उसकी ज़िन्दगी का सफ़्हा-सफ़्हा कर्ज़दार है मेरा शिव

तौबा-तौबा,
वो हिमाक़त भला 'शिव' कहाँ से लाए
जो छुए किसी कागज़ को और ग़ज़ल बन जाए

मेरा हाथ थाम, मुझे गले लगा ए जिंदगी।,
के बड़ी हसीन महबूबा छोड़ तेरे आग़ोश में आया हूँ 'शिव'

बेखबर, वह हमें सुना रहे थे इबादत के किस्से,
हमने दिखा के आइना 'शिव' अपने खुदा से मिला दिया

यादों के हमसाये शाम की सीढ़ियों से रात की छत पर चढ़ आये हैं,
याद भी है, फ़रियाद भी है, अँधेरा भी है, तन्हाई भी है,
बस तुम्हारा तसव्वुर 'शिव' कहीं नज़र नहीं आता

दर-ब-दर रहता हूँ हर लम्हा तलब में तेरी,
जुगनुओं की तरह बुझता हुआ जलता हुआ मैं

तमाम रात दिल बेकरार रहा ये सोच कर,
के शायद आ जाये करार उनको 'शिव'

आहिस्ता झटक इन ज़ुल्फ़ों को
ज़ालिम के कतरा-कतरा किसी के दिल पर तेज़ाब से गिरता है,
सहज-सहज सुलझाना इन्हें,
कहीं ऐसा न हो के लटों से दरमियाँ 'शिव' का कोई अरमान दबा निकले

न जाने क्यों हवा का मिज़ाज परखते रहते हो 'शिव'
दिल से उठा धुंआं है अपने ही रुख जायेगा


सारा दिन लावारिसों को दिखाता रहा घर की देहलीज़ें,
मगर शाम को अपना ही सामान भूल गया,
तमाम उम्र ग़ैरों के सुनाता रहा किस्से,
अपनी कहानी याद आई तो 'शिव' अंजाम भूल गया

मत पूछ की बात ले आऊंगा दिल दुखाने वाली
लोग मुझे ग़म कहते हैं, कहो तो आ जाऊँ अंजुमन में

दिन-रात तेरी तलाश रहती है
प्यास से पूछो के क्यूँ उदास रहती है
दिन के रहते-रहते हँसती है मदहोशी 'शिव'
रात आते-आते बेहोंशी हताश रहती है

कभी-कभी हम ढूँढने निकलते हैं
तुम्हारे बिन इस गुज़रती इस रात के मायने
अक्सर खाली हाथ लौटना पड़ता है
ढेर सारी उदासी के साथ 'शिव'