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कुण्डलिया-1 / राजपाल सिंह गुलिया

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1.
ठोकर खायी पाँव ने, हृदय हुआ बेचैन,
आए शक के दायरे, नाहक दोनों नैन ।
नाहक दोनों नैन, मगज का गुस्सा सहते ।
रहा पास ना ध्यान, नैन ये किसको कहते ।
जन भी खाता मार, भरोसा अपना खोकर,
सतर्कता को छोड़, पाँव ज्यों खाता ठोकर ।
2.
आशा जब तक मन रहे, मन में रहे उमंग,
चढ़ती बेल पहाड़ पर, उम्मीदों के संग ।
उम्मीदों के संग, जीव ये जग के जीते,
लिए राम की आस, रही लंका में सीते ।
कह गुलिया कविराय, नहीं ये खेल तमाशा,
जन जाता है टूट, टूटती जब भी आशा ।
3.
कहते हैं संसार के, लोग सभी ये नेक,
लेकिन आता काम तो, बस लाखों में एक ।
बस लाखों में एक, सत्य होता ज्यों सपना,
दे विपदा में साथ, वही तो होता अपना ।
कह गुलिया कविराय, नहीं भावों में बहते ।
जाँच-परख कर खूब, किसी बारे कुछ कहते ।
4.
बेशक हों सम राशियाँ, लेकिन बड़ा नसीब,
एक राशि में जन मिले, समृद्ध और गरीब ।
समृद्ध और गरीब, भाग्य से हर जन हारा,
एक राशि के वीर, राम ने रावण मारा ।
कह गुलिया कविराय, कर्म है बड़ा विकाशक,
कृष्ण किया संहार, कंस था राजा बेशक ।
5.
आवे जावे कुछ नहीं, बनते अफलातून,
करो मदद कितनी भले, हों ना ये ममनून ।
हों ना ये ममनून, गुणी की कदर न जानें,
कहें भले ही लाख, बात न राम की मानें
कह गुलिया कविराय, इन्हें ये कौन बतावे,
लगा रहे क्यों हाथ, तुम्हें जो काम न आवे ।