भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कुण सुणै / प्रमोद कुमार शर्मा
Kavita Kosh से
कूड़ी बात है
कै कोई जिको सुणै
फगत सुरतां ई सुणै
वा‘ई गुणै भावां नै
अर दरसावै आपरा रूप।
म्है तो फगत करां हां
इण रूड़ै मारग जातरा
पाळयां बैम रा भरूंटिया
जका भरता रैवै
आखी उमर चरूंटिया।