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कुदरत का गुलदस्ता / नज़ीर अकबराबादी

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दुनियां का चमन यारो है खू़ब यह आरस्ता<ref>सुसज्जित, सजा हुआ</ref>।
सरसब्ज रहे उसका हर सब्जा यह पैबस्ता<ref>लगा हुआ</ref>।
हर फूल के आने का जारी है सदा रस्ता।
हर शाख़ मुकत्ता<ref>छटी हुई</ref> है हर बर्ग<ref>पत्ता</ref> है बरजस्ता<ref>फौरन, तुरन्त</ref>।
दुनियां न कहो इसको यह बाग़ है सरबस्ता।
क्या दस्त से कु़दरत के बांधा है यह गुलदस्ता॥

या अर्जो<ref>पृथ्वी</ref> समा<ref>आकाश</ref> तारे जो आन के झूले हैं।
जिन देव परी आदम या बाद बबूले हैं।
सब वहशियों<ref>जंगली</ref> ताइर<ref>पक्षी</ref> हैं या घास के पूले हैं।
कुछ और नहीं यारो यह गुल वही फूले हैं।
दुनियां न कहो इसको यह बाग़ है सरबस्ता।
क्या दस्त से कु़दरत के बांधा है यह गुलदस्ता॥

हर शहरोदही कस्बा सब फूलों की डलियां हैं।
कूंचे हैं सो तख़्ते हैं गलियां हैं सो कलियां हैं।
दीवारो दरो हुजरे सब क्यारियां ढलियां हैं।र्
ईंट ईंट से हर घर के क्या रंग हैं रलियां हैं।
दुनियां न कहो इसको यह बाग़ है सरबस्ता।
क्या दस्त से कु़दरत के बांधा है यह गुलदस्ता॥

अम्बोह है गुंचों का और गुल की क़तारें हैं।
शाखों के तराकुम हैं बर्गो की बहारें हैं।
जो अपनी खड़े होकर खू़बी को संवारे हैं।
सब अपने ही आलम में हम हुस्न का मारे हैं।
दुनियां न कहो इसको यह बाग़ है सरबस्ता।
क्या दस्त से कु़दरत के बांधा है यह गुलदस्ता॥

कहता है गुलाब हर दम मैं इत्र सरासर हूं।
और सेब यह कहती है मैं उससे मुअत्तर हूं।
बेला यह पुकारे है मैं चांद का पत्तर हूं।
गुल अशर्फी कहती है वह क्या है मैं बेहतर हूं।
दुनियां न कहो इसको यह बाग़ है सरबस्ता।
क्या दस्त से कु़दरत के बांधा है यह गुलदस्ता॥

लाला यह सुनाता है मैं लाल का प्याला हूं।
सूरजमुखी कहती है मैं उसकी भी खाला हूं।
सदबर्ग<ref>गेंदा, सौ दलों वाला</ref> यह कहता है सौ दर्जे में बाला हूं।
गुल जाफ़री कहती है मैं उससे भी आला हूं।
दुनियां न कहो इसको यह बाग़ है सरबस्ता।
क्या दस्त से कु़दरत के बांधा है यह गुलदस्ता॥

नसरीनो समन<ref>चमेली का फूल</ref> शब्बू<ref>रात में खिलने वाला खुशबूदार फूल</ref> गुच्छा है सुरैया का<ref>रोशनी का झाड़</ref>।
नीलोफ़रो<ref>नील कमल</ref> नाफ़र्मा<ref>नटखट</ref> है रूप कन्हैया का।
राबेल चमेली भी जलवा है डलैया का।
दम भरता है जन्नत से हर फूल कटैया का।
दुनियां न कहो इसको यह बाग़ है सरबस्ता।
क्या दस्त से कु़दरत के बांधा है यह गुलदस्ता॥

कहता है कमल हर दम मैं पाक नमाज़ी हूं।
और मोंगरा कहता है मैं मर्द हूं ग़ाजी<ref>धर्मबीर</ref> हूं॥
सौसन<ref>एक नीला फूल जिसकी पंखुड़ी जबान जैसी होती है। जवान के उपमान के रूप में काव्य में प्रयोग किया जाता है।</ref> की जबां बोली मैं तुर्कियो<ref>तुर्किस्तान की भाषा तुर्की</ref> ताज़ी<ref>अरब की भाषा, अरबी</ref>।
दुनियां न कहो इसको यह बाग़ है सरबस्ता।
क्या दस्त से कु़दरत के बांधा है यह गुलदस्ता॥

मधुमालती, नागेसर और मौलसिरी, करना।
दोपहरिया दाऊदी गुल चीन कटहल, बरना।
नरगिस भी पुकारे है मुझ पर यह नजर करना।
पीछे को सुहागिन के सौ इश्क़ के दम भरना।
दुनियां न कहो इसको यह बाग़ है सरबस्ता।
क्या दस्त से कु़दरत के बांधा है यह गुलदस्ता॥

गुल केबड़ा कहता है क्या मुझको तराशा है।
और केतकी कहती है सन्दल<ref>चंदन</ref> का तराशा है।
और मोतिया शफ़तालू ज़र सीम का माशा है।
और रंगे हिना मख़मल जो है सो तमाशा है।
दुनियां न कहो इसको यह बाग़ है सरबस्ता।
क्या दस्त से कु़दरत के बांधा है यह गुलदस्ता॥

डेले व कनीज़ों की क्या पंखड़ी ढाली है।
चम्पा व मुचंपा है या मोती की बाली है॥
बगुले व मदन बान की कुछ बात निराली है।
गुल चांदनी कहती है मेरी ही उजाली है॥
दुनियां न कहो इसको यह बाग़ है सरबस्ता।
क्या दस्त से कु़दरत के बांधा है यह गुलदस्ता॥

दस्तार<ref>पगड़ी</ref> पे गुल तुर्रा क्या शान जमाता है।
कलगा भी उधर अपनी कलगी को हिलाता है॥
और फूल निवाड़े का बजरे को बढ़ाता है।
जो गुल है सो अपने ही जीवन को दिखाता है॥
दुनियां न कहो इसको यह बाग़ है सरबस्ता।
क्या दस्त से कु़दरत के बांधा है यह गुलदस्ता॥

बन आग़ तुरई टेसू क्या फूल रहे बन बन।
सरसों है अडू़सा है फिर और ही है सन बन॥
कहता है पिया बांसा है हुस्न मेरा सोसन।
दरसन यह पुकारे है आ देख ले सुखदरसन॥
दुनियां न कहो इसको यह बाग़ है सरबस्ता।
क्या दस्त से कु़दरत के बांधा है यह गुलदस्ता॥

कुदरत बनाई जिसने इस बाग़ की डाली है।
क्या बोलें ‘नज़ीर’ आगे क्या खू़ब वह माली है॥
क्या नख़्ल का डाला है क्या फूल की डाली है।
सबका वही वारिस है सबका वही वाली<ref>मालिक</ref> है॥
दुनियां न कहो इसको यह बाग़ है सरबस्ता।
क्या दस्त से कु़दरत के बांधा है यह गुलदस्ता॥

शब्दार्थ
<references/>