कुदरत की बख्शी सौग़ात को ज़िन्दा रक्खेंगे / ओम प्रकाश नदीम

कुदरत की बख्शी सौग़ात को ज़िन्दा रक्खेंगे ।
जब तक ज़िन्दा हैं जज़्बात को ज़िन्दा रक्खेंगे ।

चाहे जितनी आग उगलें ये गर्मी के सूरज,
सावन के मौसम बरसात को ज़िन्दा रक्खेंगे ।

चाहे पैदल घोड़े हाथी सारे मर जाएँ,
लेकिन शाह रहेंगे मात को ज़िन्दा रक्खेंगे ।

कब तक सुब्ह न होगी कब तक सोएगा सूरज,
कब तक चाँद सितारे रात को ज़िन्दा रक्खेंगे ।

उनको ठेका लेना है हमवार बनाने का,
वो ऊबड़-खाबड़ हालात को ज़िन्दा रक्खेंगे ।

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