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कुदरत सबका पोषण करती / शकुंतला कालरा
Kavita Kosh से
कुदरत सबका पोषण करती,
हरदम कहती रहती नानी।
मत काटो तुम इन पेड़ों को,
गुस्सा होगी कुदरतरानी।
जल से ही जीवन सबका,
बात सभी ने है यह मानी।
रोज लगाकर नई फैक्टरी,
स्वंय किया है दूषित पानी।
पवन प्राण है हर प्राणी का,
फिर भी करते हैं नादानी।
कैसे साँसे ले पाएँगे,
धुएँ की जब चादर तानी।
नहीं फैलाओ ध्वनि-प्रदूषण,
महंगी पड़ती है मनमानी।
होती कुदरत हमसे गुस्सा,
जब-जब उसकी बात न मानी।
नहीं समझते अपना हित भी,
दूषित मन है, दूषित बानी।
नहीं छेड़ो तुम उसकी लीला,
यही सिखाती हमको नानी।