Last modified on 22 अप्रैल 2017, at 13:43

कुमार विकल के निधन पर (एक) / कुमार कृष्ण

हमेशा की तरह आज भी निकली है धूप
हमेशा की तरह आज भी थोड़ा ठण्डा है फाल्गुनी दिन
कहीं कोई खास नज़र नहीं आता बदला हुआ
हाँ, लाल औजारों से कविता को धार देने वाला
कहीं चला गया है एकाएक-
वह पंजाबी लोहार
उसका इस तरह चले जाना
आदमी और कविता दोनों के लिए एक दुःख-भरी खबर है
जिसे मैं पढ़ता हूँ बार-बार और सोचने लगता हूँ-
एक छोटी-सी लड़ाई के बारे में
तेईस बरस पहले मैंने पहली बार उस शख्स को
जब लल्लन राय के घर देखा था
वह कविता और रावलपिण्डी दोनों पर
एक साथ बात कर रहा था
वह जान चुका था बहुत समय पहले
रंग खतरे में हैं
इसीलिए धूमिल की तरह कोई
मुनासिब कार्रवाई करना निहायत जरूरी है
वह लड़ता रहा लगातार-
'एक छोटी-सी लड़ाई
छोटे लोगों के लिए
छोटी बातों के लिए'
बनाता रहा एक खूबसूरत तस्वीर
आने वाले कल की
सिलता रहा वह पंजाबी फकीर
रावलपिण्डी की फटी हुई लोई
निभाता रहा क्लर्क और कविता का रिश्ता।